रविवार, 22 अप्रैल 2012

तन्‍हा दिन...खामोश रात...

तन्‍हा-तन्‍हा दिन गुजरा, खामोशी से रात हुई
ख्‍वाब सिरहाने बैठे तो जज्‍बातों की बात हुई
नजरे झुकाए बैठे दोनों के कौन करे शुरुआत
लब हिलते ही दोनों के शिकवे से शुरुआत हुई
सुलगी आंखें सोच रही थीं कैसे कटेगी रैन निगौडी 
अरमानों की बगिया पर फिर आंसू की बरसात हुई
आए, बैठे और चल दिए दामन छुडा के अपना
 सोच रहे थे वो भी शायद अधूरी मुलाकात हुई

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