पडाव...
फिर आज उम्र
का एक पडाव आया
सोचता हूं
मैंने क्या खोया, क्या पाया
यूं तो
जिंदगी से है शिकवा नहीं कोई
जाने क्यूं
कसक-सी है न आराम आया
हिसाब हरपल
का करूं तो याद आता है
किसका दिल
दुखाया, कितनों को हंसाया
जो भी है,
छूटेगा यहीं पर मालूम है मुझे
फिर क्यूं
सोचूं क्या अपना, क्या है पराया
मेरे खुदा
मुझपे इतनी-सी इनायत कर दे
जाऊं जहां से
तू कह देना कोई तेरा आया
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