रविवार, 22 अप्रैल 2012

मुश्‍किल सवाल...मुख्‍तसर जवाब...


मुश्‍किल से सवाल का जवाब भी मुख्तसर हो जाए
काश, बातों ही बातों में ये बात भी पुरअसर हो जाए
चलते रहे हैं जो अलग-अलग रास्तों पे अभी तक
उम्मीद का सूरज उगे, एक उनकी रहगुजर हो जाए
मंदिर-मस्जिद के नाम पर लडते-लडाते रहे हैं जो
एक आंख में देखें दोनों, उनकी ऐसी नजर हो जाए
जात-पात के पतझड में सूख चुकी हैं जिसकी शाखें
प्यार के सावन में हरा वो अमन का शजर हो जाए
चलो, ऐसा जहां बनाए हम, मिल-जुलकर रहें सभी
नफरत की यहां शाम ढले, सुकून की सहर हो जाए
मुझे उम्मीद है के उगेगा अमन का सवेरा यहां भी
काश, इस शहर का हर शख्स यूं उम्मीदबर हो जाए
हूंक उठी, आवाज उठी और जाग उठा आवाम यहां
कुछ तो हो, हुकूमत को इस बात की खबर हो जाए

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