सफर पे निकले...
सफर पे निकले पर कोई रास्ता रोकता है
यादों के बीहड में कौन मन झकझोरता है
तिनके बटोरता हूं घरौंदा बनाने की चाह में
एक वो है जो रह-रहके अरमान तोडता है
खलिश तो है उस शजर के सूख जाने की
पर न
मैं ही सींचता हूं, न ही वो रौपता है
स्याह रात में चांद खिला, चकोर इतराए
मैं सितारे मांगता हूं, पर न वो तोडता है
पूछ लो कोई तो उससे
वो चाहता है क्या
न खामोश रहता है, न ही लब खोलता है
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