आ भी जाए तो क्या...
गुलिस्तां
में गर बहार आ भी जाए तो क्या
नादान
दिल को करार आ भी जाए तो क्या
वो छूटेंगे यूं, बेयकीं-सा है अब तक सबकुछ
उनके जाने का एतबार आ भी जाए तो क्या
रंजोगम की महफिल पे क्या फर्क पडता है
फिर से गर्द-ए-गुबार आ भी जाए तो क्या
खुद से लड जिंदगी में जीते तो क्या जीते
अबकी बार हमें हार आ भी जाए तो क्या
सितमगर वक्त से शिकवा करें भी तो क्यों
अब उसे मुझ पे दुलार आ भी जाए तो क्या
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