सुरमयी-सी शाम...
सुरमयी-सी उस शाम का तुमसे फसाना क्या कहूं
मैं था, वो थे, समा वो था कितना सुहाना क्या कहूं
हाथ में जाम था, मेरे लबों पे उसका ही नाम था
बात ही बात में छिड गया था जो तराना क्या कहूं
फिर वही शाम है, मैं हूं और तन्हाई घेरे रखती है
भुलने को क्या-क्या न बनाया बहाना क्या
कहूं
याद बनकर जो दिल में चुभ गई थी मेरे शूल-सी
उस लो का आग बनकर दिल
जलाना क्या कहूं
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