अंधेरे गर रोशनी से उजाला उधार मांग लेते
हम भी कयामत से जिंदगी उधार मांग लेते
मुफलिसी में जिन्होंने न फैलाया हाथ कभी
वो किसी से कैसे खुशियां उधार मांग लेते
समंदर बुझा सका न प्यास जिनकी उम्रभर
कैसे भला
दरिया से कतरा उधार मांग लेते
जमीं पे रहके सोचते थे जो बात आसमान की
फिर वो कैसे चांद से सितारे उधार मांग लेते
सफर में साहिल तक लडखडाई किश्ती कई बार
जज्बा था, मौजों से कैसे किनारे उधार मांग लेते
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