रविवार, 29 अप्रैल 2012

जिंदगी गुजरती रही...

जिंदगी गुजरती रही, वक्‍त चलता रहा
कभी मैं गिरता तो कभी संभलता रहा
अंधेरी राहों पर चलते हुए सोचा नहीं
कितना बचा मैं, कितना जलता रहा
मंजिल दूर है इसकी खबर थी मुझको
पर उसे पाने का ख्‍वाब भी पलता रहा
पत्‍थर फेंक दिए, कांटें भी बिछाए बहुत
काफिला-ए-रकीब साथ-साथ चलता रहा
आंखों में हयात के हजार मंजर लिए हुए
मैं मयार-ए-यार में खुद ही ढलता रहा
उलझनों की भीड में जाने खो गया कहां ?
सवाल जो जवाब को राहभर मचलता रहा
याद करने से भी जो अब याद नहीं आता
उसे भूलना जाने क्‍यूं ताउम्र खलता रहा

मंगलवार, 24 अप्रैल 2012

चमकते रहे कभी..


चमकते रहे कभी हम सितारों की तरह
फिरते हैं दर-ब-दर अब आवारों की तरह
तेरी याद सुकून देती रही ताउम्र मुझको
गर्म रेत पर ठंडे पानी की फुहारों की तरह
भुगत रहे हैं सजा हम अपनी बेगुनाही की
लेते हैं नाम वो मेरा खताख्‍वारों की तरह
उठकर बज्‍म से तेरी अब जाना ही अच्‍छा
ठहरना मुनासिब नहीं शर्मसारों की तरह
मंजिल की आस में सफर पे नहीं निकले
रास्‍तों पे जां निसारी फकत यारों की तरह

उससे अदावत करके...


उससे अदावत करके हमने खोया बहुत
मुझसे मुंह फेर के वो भी तो रोया बहुत
जाने क्‍यूं मायने तलाशने में जुट गए
अब तलक तो शिकवों को पिरोया बहुत
पूछते हो तुम कि आंख सूखी-सी क्‍यों हैं
सुनो, ख्‍वाबों को निगाह ने भिगोया बहुत
बात आने दो फिर बता देंगे हम तुम्‍हें भी
दिन ढले तक तो चांद भी यहां सोया बहुत

नए शहर में...


नए शहर में घर नया बसाया कैसे जाए
नजर से उतर दिल में समाया कैसे जाए
जुबां से कभी किसी को कहा नहीं कुछ
बिन कहे हाल-ए-चश्‍म बताया कैसे जाए
यहां रोज कोई गुलशन आह भरता रहा
जाती हुई बहार को बुलाया कैसे जाए
यूं तो मुलाकात भी होती रही अक्‍सर
घर बेवजह उनके कहो जाया कैसे जाए

दिन ढल चुका...


दिन ढल चुका पर रात अभी आई न थी
मौसम पर कभी ऐसी उदासी छाई न थी
आया तो था मिलने मुझसे दोस्‍त बनके
बातों में उसकी वो हौसलाअफ्जाई न थी

हर आहट पर...


हर आहट पर क्‍यूं तेरा इंतजार रहे
हटते ही धुंध-सी दिल सोगवार रहे
राहें भी गुजरती रहीं रफ्ता-रफ्ता
तन्‍हाई थी बची जो बस हमवार रहे
चांद-तारों की चमक मंद पडने लगी
निगाहों की चमक भी तार-तार रहे
आहट तेरी कभी बदलेगी हकीकत में
इसी कश्‍मकश में खुद से ही रार रहे

जिंदगी समझो चिराग-सी....


जिंदगी समझो चिराग-सी हो जाए
आंखों में बस जरा आग-सी हो जाए
भीड में मुर्दनी छायी थी अब तलक
चिहाडों में अब तो जाग-सी हो जाए
मातमी धुन गाने का वक्‍त जा चुका
महफिल खुशनुमा राग-सी हो जाए
साथ सावन का सूखे को निगल लेगा
यहां की रौनक फिर बाग-सी हो जाए

थोडा-सा इंतजार...


चलो थोडा-सा और इंतजार कर लेंगे
आदत है हमें, गमों से प्‍यार कर लेंगे
मेरे हिस्‍से बेवफाई आई अब तलक
एक और बेवफा का एतबार कर लेंगे
गिनाता फिर रहा है जो कमियां मेरी
हम उसी को अपना राजदार कर लेंगे
राहें भी जब थककर छोडेंगी साथ मेरा
सफर में तन्‍हाई को हमवार कर लेंगे