रविवार, 22 अप्रैल 2012

जाने कहां गए...


जाने कहां गए वो ख्‍वाबों का महल बनाने वाले
अपनी कहने और तेरी-मेरी सुनने-सुनाने वाले
सुना था वक्‍त तेज चलता है बहुत, सही होगा
सुना ये भी था के वो थे वक्‍त को डिगाने वाले
साया साथ छोड दे जब धूप निकले न दूर तक
कहां ढूंढू मैं, हर मौसम में साथ निभाने वाले
अब खत्‍म हो गया ख्‍वाबों से याराना नींद का
अब आंखों में नहीं बसते सपने दिखाने वाले
अरमां भी अब मचलने की हिम्‍मत नहीं करते
हो गए कैद, दिल खोलके मिलने-मिलाने वाले
मुझको यकीं न आएगा उनके लौट आने तक
भरोसा तोड के गए हैं वो विश्‍वास दिलाने वाले

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