मेरे ख्वाबों में तुम रोज आते क्यों
हो
सोया हूं गहरी नींद में, जगाते क्यों हो
ख्वाब में आए हो, आओ सामने कभी
इंतजार आखिर इतना कराते क्यों हो
आइना भी अब तो ये कहने लगा हमें
ख्वाब देख के इतना इतराते क्यों हो
आ भी जाओ अब, हम बुलाते हैं तुम्हें
न आने के बहाने रोज बनाते क्यों हो
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें