तेरा चेहरा...मेरा आइना...
जाने
क्यूं तेरा चेहरा कभी मेरा आइना न हुआ
गुफ्तगू
तो रोज हुई पर कभी सामना न हुआ
मुद्दत
हुई तुम्हें कहीं आए-जाए, अब तो आओ
कब
से बुलाते हैं हम, बस तेरा आना न हुआ
उदास
शाम, स्याह रातों से दोस्ती नहीं अच्छी
बता तो क्यों उजालों से तेरा दोस्ताना न हुआ
रंज-ओ-गम तो तेरे मेहमां रहे हमेशा मगर
गमख्वारों का कभी क्यों न आना-जाना हुआ
रिसता रहता है शायद रिश्तों का लहू अब तक
जो मिला था जख्म क्या अब तक पुराना न हुआ
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