मंगलवार, 24 अप्रैल 2012

जिंदगी समझो चिराग-सी....


जिंदगी समझो चिराग-सी हो जाए
आंखों में बस जरा आग-सी हो जाए
भीड में मुर्दनी छायी थी अब तलक
चिहाडों में अब तो जाग-सी हो जाए
मातमी धुन गाने का वक्‍त जा चुका
महफिल खुशनुमा राग-सी हो जाए
साथ सावन का सूखे को निगल लेगा
यहां की रौनक फिर बाग-सी हो जाए

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