सब हालात के मारे थे...
महफिल में जो थे सब हालात के मारे थे
हर कोई कहता वह भी किसी के प्यारे थे
बज्म-ए-मय में भी ढूंढते फिर रहे सहारा
कहते हैं जो कुछ थे बस उसी के सहारे थे
वही सवेरा था, शाम ढलती उसकी दीद से
अमावस में मानों उतरते चांद-सितारे थे
रिश्तों की सूरत बदली अब ओ सीरत भी
मौजों से हारे जब बेहद करीब किनारे थे
चाहत है जिंदगी में फिर मोड वो आ जाए
जहां पर हम सबके थे और सारे हमारे थे
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