कैसी हो गई जिंदगी...
सूखे
हुए एक दरख्त-सी हो गई है जिंदगी
जाने क्यूं इतनी सख्त-सी हो गई है जिंदगी
ख्वाब इतने, ख्यालात
इतने, जज्बात
इतने
फिर भी अधूरे दस्तखत-सी हो गई है जिंदगी
अल्हड थी कभी अलमस्त, कभी
मदमस्त थी
अब जख्म से रिसता रक्त-सी हो
गई है जिंदगी
सपनों से आगे दौडने की ख्वाहिश
में यकीनन
पहरों से ठहरा हुआ वक्त-सी हो
गई है जिंदगी
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