ख्वाहिशें...
ख्वाहिशों मचल गईं सुनने-सुनाने में
बेवजह आम हो गई चर्चा ये
जमाने में
अब रंज करने से भला हासिल
क्या हो
खता तो हो ही गई हमसे वो
अंजाने में
यकीं टूटा, हाथ
छूटे, बदल गए रास्ते भी
मुद्दत लगी थी दोस्ती का
शजर लगाने में
समझने-समझाने का दौर अब
थम चुका
लेकिन हर्ज कुछ नहीं भी
फिर मनाने में
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