तेरे इश्क की जाने क्यूं...
तेरे इश्क की जाने क्यूं कमी खलने लगी है अब
इंतजार में दिन गया रात भी ढलने लगी है अब
मिलकर भी मिल सके न क्यूं अफसोस है मुझे
मिलने की उम्मीद भी हाथ मसलने लगी है अब
माना के अब बज्म में तेरी रंगत ही कुछ और है
मुझसे तेरी अंगुलियां क्यूं फिसलने लगी हैं अब
होने लगा यकीन मुझेको तू लौटेगा न कभी इधर
सिलवटी ख्वाबों की चिता भी जलने लगी है अब
तन्हा-सा खडा था उन्हीं पुरानी राहों पे इंतजार में
मुंह मोड के मुझसे तन्हाई भी चलने लगी है अब
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