माझी...मीत मन का
रविवार, 22 अप्रैल 2012
मैं..मैं ही रहूं...
मैं
,
मैं ही रहूं या कोई और हो जाऊं
सीमित ही रहूं या चहुंओर हो जाऊं
बहुत तडपाया तूने
,
तू ही बता दे
चैन जाने दूं या चितचोर हो जाऊं
ख्वाब दरके तो आवाज नही आई
अब खामोश रहूं या शोर हो जाऊं
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