बुधवार, 16 मई 2012

सिताइशगर है तू या...

सिताइशगर है तू या सितमगर, पता नहीं
फूल है या कोई कांटों भरी डगर, पता नहीं
सारी दुनिया तेरी उंगली पे नाचती है क्‍यूं
तू शाह है या फिर कोई कलंदर, पता नहीं
कतरा हूं मैं, आखिर मेरी बिसात है क्‍या
तू दरिया है कोई या समंदर, पता नहीं
तेरी बज्‍म में अब आते हुए डर लगता है
रहजन है नकाब में या रहबर, पता नहीं
मिलना है तो कभी याद कर ले शिद्दत से
मत पूछ मेरा पता, तुझे अगर पता नहीं
लबों पे क्‍यूं जुंबिश-सी होती रही बार-बार
कसक मुझमे है या तेरे अंदर, पता नहीं
इस राह में कोई मील का पत्‍थर नहीं है
अभी कितना बाकी है सफर, पता नहीं

हर्फ-ए-गलत की तरह...

हर्फ-ए-गलत की तरह मिटाना आता है
तुम्‍हें तो सिर्फ जुल्‍म ढहाना आता है
गलत हो पता है, बस ये मानते नहीं
हर मर्तबा तुम्‍हें नया बहाना आता है
तौर-तरीकों में जरा-सा बदलाव ले आओ
वरना वक्‍त को उसूल सिखाना आता है
क्‍यों खडे रहते हो खोखली बुनियाद पर
सच को झूठ की दीवार गिराना आता है
बुलंदी पर हो तुम तो इतना याद रखना
बुरे दौर को भी आना-जाना आता है

इलाज-ए-गम...

अब इलाज-ए-गम की जरूरत नहीं रही
जाने क्‍यूं ये दुनिया खूबसूरत नहीं रही
अपनों के खून से हाथ रंगने लगे यहां
रिश्‍तों में अब वो कैफियत नहीं रही
पहले जां लुटाते फिरते थे जहान पर
अब गम-ए-यार की हिमायत नहीं रही
जुनून-ए-इश्‍क अब मतलब परस्‍ती है
क्‍या कहे, किसी से शिकायत नहीं रही
पत्‍थरों को पूजते शिद्दत से अब तलक
जान-ओ-जिंदगी की जियारत नहीं रही

मंगलवार, 15 मई 2012

मगरुर ठहराने पर तुले हैं...

कुछ लोग मुझे मगरुर ठहराने पर तुले हैं
वक्‍त है जो कतरों के लब हम पर खुले हैं
खामोशमिजाजी बददिमागी लगने लगी
पूछे तो कोई वो कहां,कितने दूध के धुले हैं
हमें पहचान लेंगे तो गुस्‍सा खुद हवा होगा
हम तो मानों बहते हुए पानी पे बुलबुले हैं

मेरे हुनर पर तोहमत..

मेरे हुनर पर तोहमत लगाने वालों ये सोचो
हुनरमंद तो तुम भी बने फिरते हो जहान में
अपनी तलाश कर लो कभी फुर्सत मिले तो
क्‍यों झांकते फिरते हो औरों के गिरहबान में
तुम महफिल में भी तन्‍हा-तन्‍हा से क्‍यूं हो
मुझे महफिल-सी नजर आए है बियाबान में
कभी तुम खुद को मुझ जैसा करके तो देखो
जान पड जाएगी तुम्‍हारे मरे चुके अरमान में