बुधवार, 16 मई 2012

इलाज-ए-गम...

अब इलाज-ए-गम की जरूरत नहीं रही
जाने क्‍यूं ये दुनिया खूबसूरत नहीं रही
अपनों के खून से हाथ रंगने लगे यहां
रिश्‍तों में अब वो कैफियत नहीं रही
पहले जां लुटाते फिरते थे जहान पर
अब गम-ए-यार की हिमायत नहीं रही
जुनून-ए-इश्‍क अब मतलब परस्‍ती है
क्‍या कहे, किसी से शिकायत नहीं रही
पत्‍थरों को पूजते शिद्दत से अब तलक
जान-ओ-जिंदगी की जियारत नहीं रही

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