रविवार, 22 अप्रैल 2012

कुछ न कहो...


जाने मुझे हर शख्‍स परीशां सा लगता क्‍यूं है,
पूछ लूं तो ये डर है, न कह दे के कौन तू है,
निगाहों से निगाहें मिलते ही पता चलता है,
यहां हर शख्‍स की नजर में तू है, बस तू है
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बहुत दिन बाद कोई साथी मिला तो है
हमें नहीं पर आइने को हमसे गिला तो है
तुझ पे ही छोडते हैं रिश्‍ते की यह डोर
तूने ही छितरे मन को सिला तो है
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मौजों की लडाई में साहिल हमसे ही छूटे हैं
नींद की दस्‍तक से पहले हमारे ख्‍वाब टूटे हैं
तुम लिए फिरो शहर भर में इल्‍म के चिराग
यहां तो हर वादा छलावा, सभी दावे झूठे हैं

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