जिंदगी...इम्तिहान और हम...
जिंदगी में
जाने कितने इम्तिहान आए
न तो वो
डगमगाए न ही हम डगमगाए
जाने बात क्या
हुई हम रूठ गए खुद से
वक्त पे वो
काम आए न हम काम आए
रात
चांदनी-सी लगी उस अमावस में भी
जब नींद आते
ही उनके ख्वाब तमाम आए
सैलाब-सा उठा
आखों में समंदर की तरह
न आंसू काम
आए न ही गम काम आए
फुर्सत में
भी अब तो फुर्सत नहीं लगती
कोई तो बता
दे वो हुनर जो आराम आए
जिससे मिलने
को तरसते थे फरिश्ते भी
कहर बरपेगा
आज वो बज्म-ए-आम आए
जमाना भी जल
उठेगा जो देखें एक नजर
क्या बिसात
साथ में उनके मेरा नाम आए
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