मंगलवार, 24 अप्रैल 2012

नए शहर में...


नए शहर में घर नया बसाया कैसे जाए
नजर से उतर दिल में समाया कैसे जाए
जुबां से कभी किसी को कहा नहीं कुछ
बिन कहे हाल-ए-चश्‍म बताया कैसे जाए
यहां रोज कोई गुलशन आह भरता रहा
जाती हुई बहार को बुलाया कैसे जाए
यूं तो मुलाकात भी होती रही अक्‍सर
घर बेवजह उनके कहो जाया कैसे जाए

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