माझी...मीत मन का
रविवार, 21 अगस्त 2016
काश ! मेरे शहर का हर शख्स इन्सान हो जाए
सोचो ! जिंदगी कैसी खुशनुमा
,
आसान हो जाए
हर रात साथ अँधेरे की चादर लाती तो ज़रूर है
उजाला ढूंढ लो के साथ आरती
,
अजान हो जाए
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