कलम रही खामोश, शब्द सारे टूट गए
कुछ से
छूटा मैं तो कुछ मुझसे छूट गए
तेरी
बात तो तू जाने, मैं बस अपनी जानूं
अंदर
से जब-जब सिमटा, बाहर सारे रुठ गए
तारे, जुगनू, चांद, चकौर, रात के
साथी हैं सारे
इन
आंखों से सारे नजारे, सारे मंजर रुठ गए
मेरी
सोचो तब तुम जानो, क्यों हूं मै खामोश
मेरी
छोडो, तुम
देखो, तुमको
अपने लूट गए
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