रविवार, 21 अगस्त 2016

सूरज, चांद, सितारे सब
उसकी आंख के तारे सब
उसी के बूते सब जिंदा हैं
लगते उसको प्‍यारे सब
ढूंढ रहे हैं पर्वत-जंगल
पठार, नदी किनारे सब
वो सच्‍चा है, ये भी सच्‍चे
क्‍यूं फिरते मारे-मारे सब
झांक के देखो अपने अंदर
ईश्‍वर, अल्‍लाह, गॉड, रब

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