आज मिला फिर वो अजनबी की
तरह
बहता रहा मैं भी खामोश नदी की तरह
चुपचाप देखता रहा मुझे बस किनारे से
एक-एक लम्हा लगा कई सदी की तरह
मैं खाक हूँ चाह कर भी छू नहीं सकता
वो
ऊँचा है आसमां की बुलंदी की तरह
शिकवा-शिकायत
भी होती रही बहुत
मिले
भी कई बार हम महजबीं की तरह
अब तोड़
दो जो तोड़ सको ये हदें सारी
जिंदगी
जियें तो जियें बंदगी की तरह
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