माझी...मीत मन का
रविवार, 21 अक्टूबर 2012
जर्रा हूं मैं...
जर्रा हूं मैं, मेरा क्या असर होगा
जिक्र तवील, नाम मुख्तसर होगा
हर मील के पत्थर से पूछता हूं
और कितना लंबा सफर होगा
यही बेकशी रही तो एक दिन
दोस्तों के हाथ में पत्थर होगा
तुम समझते हो तो जर्रेनवाजी है
वो समझते हैं के सूखा शजर होगा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें