रविवार, 21 अक्टूबर 2012

बिक रहा ईमान...

बिक रहा ईमान, खरीदोगे क्‍या ?
कोडियों में इंसान खरीदोगे क्‍या ?
यहां ख्‍वाब भी तराजू में तुले हैं
सपने हैं सामान, खरीदोगे क्‍या ?
बेतुके से लगते हैं दीवार ओ दर
घर अब है मकान, खरीदोगे क्‍या ?
मेज-कुर्सियां अब बेकार पडी हैं
आए न मेहमान, खरीदोगे क्‍या ?
झोपडी तेरे महल से अच्‍छी थी
बाकी हैं निशान, खरीदोगे क्‍या ?
अब नींद आए भी तो कैसे आए
बेकार है आराम, खरीदोगे क्‍या ?
हम जिंदा है, पर लाशों की तरह
लाश की पहचान, खरीदोगे क्‍या?
कभी खिलखिलाहट गूंजती थी
कहां है मुस्‍कान, खरीदोगे क्‍या?
अब बोलूं भी न, चुप रहूं क्‍यूं ?
मेरी है जुबान, खरीदोगे क्‍या ?

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