माझी...मीत मन का
बुधवार, 24 अक्टूबर 2012
सुबह, दोपहर, शाम ओ रात में रहो
सुबह, दोपहर, शाम ओ रात में रहो
हर वक्त, तुम मेरी हर बात में रहो
वक्त-बेवक्त ये आंधियां डराती हैं
हर घडी, हर पल मेरे साथ में रहो
बिखर भी जाऊं तो कोई गम नहीं
संभलू गर जेहन ओ जात में रहो
बिजलियां मुझे डराएंगी कब तलक
बस सिलसिला-ए-मुलाकात में रहो
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें