रविवार, 21 अक्टूबर 2012

रुलाता बहुत है....

कभी कभी वो मुझे रुलाता बहुत है
सुर्ख आंखें देख फिर मनाता बहुत है
कभी दिल तोड देता हैं, कभी अरमान
दूर रहने पर मुझे याद आता बहुत है
हर वक्‍त उसी की सोच में डूबी रहती हूं
दुपट्टा मेरा आजकल लहराता बहुत है
उसके बिना मेरी जिंदगी होगी कैसी
ख्‍याल ये मुझे आता-जाता बहुत है
रात फिर उसी को मैंने ख्‍वाब में देखा
ख्‍वाब उसका मेरा दिन महकाता बहुत है

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