रविवार, 21 अक्टूबर 2012

सूरज से मैंने उजाला उधार...

सूरज से मैंने उजाला उधार मांगा था
शबनमी रातों से थोडा खुमार मांगा था
गुस्‍ताखी समझते हो तो समझो बेशक
अपने यार से मैंने अपना यार मांगा था
ये दीवार अब छतों से बाते करने लगी
दोनों में थोडा फासला, मयार मांगा था
मुद्दत से नहीं मिले जाने क्‍या बात है
उससे बस दो पल का दीदार मांगा था
तूने नहीं दिया वक्‍त ये तेरी मर्जी खैर
जब भी मिले हमने हर बार मांगा था
मेरे हिस्‍से में तेरी नफरत थी बेवजह
कभी अपने हिस्‍से का प्‍यार मांगा था
यकीं करके जिंदगी जहन्‍नुम कर ली
मैंने बस जरा-सा एतबार मांगा था

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